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Sunday, March 28, 2010

चलिए स्वागत करिए, हम पुनः उपस्थित हैं.

अब ये मत पूछो बालक कि आप कौन हैं ! अरे हम वही ई-गुरु हैं, यार.
समझते भी नहीं.
हमें अपने ही मुंह से अपनी तारीफ़ करनी पड़ जाती है.
एक सज्जन बोल रहे थे, आप जैसे क्रांतिकारी रहे होते तो हम कबहूँ आजाद नहीं हुए होते.
अरे बच्चा, तो क्या तुम आजाद हो !
कौन सी समस्या से आजाद हो !
तब इंग्लैण्ड की महरानी तुम्हारा खून चूसती थीं,
आज इटली की महारानी तुम्हारा खून चूसती हैं.
क्या बदला क्या है यार !!
अब हम आ गए हैं, तो सब चकाचक तो होना ही है.
धैर्य रखो धैर्य, इसका फल गुड़ से भी मीठा होता है. अब ये मत कहना कि हमें गुड़ नहीं पसंद है,
या ये मत कहना कि डायबिटीज है.
तुम लोग भी यार कुछ भी बोलते हो, अंय
चलो अच्छा, इतना इंट्रो बहुत है.
अरे मुन्ना, बाकी अगले लेख में लेना.....कि सब यहीं ले लोगे.

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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